चतुर्थ औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़़ता भारत 

(राजेश पाठक)
सम्प्रति सम्पूर्ण विश्व चतुर्थ औद्योगिक क्रांति की दौर से गुजर रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत जब आजाद हुआ था, उस समय विश्व के अधिकांश विकसित देश तीसरी औद्योगिक क्रांति को आत्मसात कर चुके थे, अर्थात् परिष्कृत इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना तकनीक का इस्तेमाल कर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करते जा रहे थे। उस दौर में भारत तीसरी औद्योगिक क्रांति का सम्पूर्ण हिस्सा नहीं बन पाया क्योंकि देश उस समय रूढ़िवादिता एवं वैज्ञानिक बदलाव के बीच की दुविधा का शिकार  रहा । परन्तु जैसे-जैसे  हम 21वीं सदी की ओर बढ़ते गए विश्व जगत में औद्योगिक क्रांति जनित सकारात्मक एवं प्रभावोत्पादक बदलाव ने भारतीयों को भी सोचने को मजबूर कर दिया और धीरे-धीरे ही सही हम तीसरी औद्योगिक क्रांति एवं तत्पश्चात् चौथी औद्योगिक क्रांति जिसमें सूचना तकनीक का जैविक क्षेत्रों में अनुप्रयोग करने, मानव एवं मशीन के सफल संलयन कर एक नई विश्व अर्थव्यवस्था के निर्माण में सहायक बन कर अपनी विश्व भागीदारी में एक नया आयाम गढ़ने में सफल होने लगे। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आजादी के ठीक बाद के शुरूआती दौर में भारत ने भले ही वैज्ञानिक प्रयोग को अपनाने में अपनी रूढ़िवादिता प्रदर्शित किया हो, परन्तु विश्व में हो रहे नित नये-नये वैज्ञानिक प्रयोग एवं उस प्रयोग से अर्थव्यवस्था में आये व्यापक साकारात्मक परिणाम ने हम सबों को नयी औद्योगिक क्रांति का हिस्सा बनने को मजबूर कर दिया।
आज हम अन्य विकसित देशों की तरह ही कृत्रिम बुद्धि, रोबोटिक्स, इंटरनेट ऑफ थींग्स, स्वचालित वाहनों, 3डी प्रिटिंग, नेनो टेक्नोलॉजी, जैव तकनीक, ऊर्जा संचरण, क्वांटम कम्पयुटींग आदि के क्षेत्रों में वृहत्तर वैज्ञानिक प्रयोग कर देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में उतरोत्तर सफल हो रहे हैं। इतना ही नहीं कैब बुकिंग हो या फिर हवाई टिकट बुकिंग हम इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का प्रयोग कर घर बैठे ही सहजता से उनके उपयोग कर पाने में सफल हो रहे हैं। जहाँ भू-दस्तावेजों का डिजटलीकरण संभव हुआ है, वहीं जन्म-मृत्यु निबंधन, आवासीय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, खाद्यान्न हेतु राशन कार्ड, छात्रावृति आदि की ऑन-लाईन प्रविष्टि एवं उनके समाधान भारत को चौथी औद्योगिक क्रांति का हिस्सा बना दिया है। वास्तव में इस क्रांति ने विकास के समस्त द्वार खोल दिये हैं। आवश्यकता इस बात की है कि नव-वैज्ञानिक प्रयोगों को अपनाने में हम कितने क्रियाशील हैं। देखा जाय तो इस चौथी औद्योगिक क्रांति ने भारत सहित अन्य विकसित देशों में जैव इंजीनियरिंग, सोशल इंजीनियरिंग एवं पदार्थ इंजीनियरिंग को एक दूसरे के साथ संलयन कर नव-वैज्ञानिकतावाद को जन्म दिया है जिसके अनुप्रयोग से देश का व्यापारिक क्षितिज चाहे वह वस्तु से संबंधित हो या सरकार द्वारा सेवा प्रदायी तंत्र से संबंधित, सभी में क्रमिक साकारात्मक बदलाव दृष्टिगोचर होने लगे हैं जिसे हम ई-कॉमर्स एवं ई-गवरनेंस के रूप में देख रहे हैं। इस क्रांति से भारत में एक नये औद्योगिक संबंध का सूत्रापात हुआ है। श्रम कानूनी में मानवादी उपागमों को समुचित स्थान मिला है। अनुपयोगी श्रम कानूनों को निरस्त एवं उसके स्थान पर प्रभावोत्पादक कानूनों को स्थान दिया जा रहा है। श्रमिक-उद्योगपतियों का विवाद शांति-पूर्ण तरीके से सुलझाने पर बल दिया जाने लगा है। उद्योगपतियों द्वारा श्रमिक केन्द्रित कार्य व्यवहार को प्राथमिकता दी जाने लगी है एवं उनके कल्याणार्थ वैज्ञानिक सोच उपजने लगी है। उद्योगों में बड़े पैमाने पर उत्पादन हेतु आधुनिक मशीनीकरण का श्रमिकों द्वारा भी स्वागत किया जाने लगा है। समुन्नत तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त करने में श्रमिकों की रूढ़िवादिता में कमी आई एवं वे ‘मशीन फ्रेंडली’बनते जा रहे हैं।
कुल मिलाकर भारत एक सचेत एवं सशक्त आर्थिक संवृद्धि वाला देश बनते जा रहा है। इसका सबड़े बड़ा प्रमाण तब मिलता है, जब पिछले दिनों विश्व आर्थिक मंच द्वारा यह प्रबलता से स्वीकार  किया गया कि भारत चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए एक उर्वर देश है।
इतना ही नहीं अब सरकार द्वारा यह भी जी तोड़ प्रयास किया जा रहा है जिसमें अपने देश की आंतरिक सीमाओं में ‘डिजिटल डिवाइड’ के गैप को पूर्णतः समाप्त किया जा सके। उद्योगों में भी कृत्रिम बुद्धि के प्रयोग पर बल दिया जाने लगा है।एक अनुमान के अनुसार 2030 तक इसके प्रयोग से विश्व अर्थव्यवस्था में लगभग 16ट्रिलियन डॉलर के बराबर भागीदारी सुनिश्चित की जा सकेगी जो सचमुच में एक नयी विश्व अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में सहायक सिद्ध होगी।
वह दिन दूर नहीं जबकि भारत कुछेक वर्षों में पांचवीं औद्योगिक क्रांति की राह पर चल पड़ेगा एवं विश्व बिरादरी के साथ सौर विकिरण को कम करने के तकनीक ‘स्पेस बब्ल्स’ के अनुप्रयोग में भी अपनी महती भूमिका निभाने में सक्षम होगा।
(लेखक गिरिडीह, झारखण्ड में सांख्यिकी पदाधिकारी हैं)।
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